साभार दैनिक जागरण ------
कोलकाता। आम धारणा है कि गाय का दूध बहुत पौष्टिक होता है। आमतौर पर महिलाएं बच्चों को गाय का दूध पाचन में भी आसान होने के नाते वही देना पसंद करती हैं। लेकिन एक ताजा शोध के मुताबिक गाय का दूध शिशुओं के लिए नुकसानदेह है। चूंकि इसमें प्रोटीन की प्रचुर मात्रा रहती है। इसलिए यह शिशुओं की किडनी को नुकसान पहुंचाता है।
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ के बायो केमेस्ट्री व पोषण विभाग के प्रमुख देबनाथ चौधरी ने कहा कि गाय का दूध उच्चस्तरीय प्रोटीन होने के कारण शिशुओं की नाजुक किडनी के लिए घातक होता है। जो महिलाएं शिशुओं को अपना दूध नहीं दे पातीं, वह गाय का दूध देने के बजाय अन्य विकल्पों पर विचार करें। साथ ही इस विषय में अपने चिकित्सक से अवश्य सलाह ले लें। उनका कहना है कि तेजी से शारीरिक विकास कर रहे शिशुओं के लिए गाय का दूध एकदम अनुपयुक्त है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-3 का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि शिशुओं के लिए गाय के दूध को सुरक्षित मानना एक गलत अवधारणा है।
चौधरी के विचारों को उचित मानते हुए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन के निदेशक बी. शशिकरन ने कहा कि गाय के दूध में पोषक तत्वों की कमी होती है और इसमें लौह तत्व भी काफी कम होता है। हालाकि बच्चों को गाय का दूध पिलाने की भारत में हजारों साल पुरानी परंपरा है, लेकिन आज के युग में जब ऐसे दूध में बड़ी मात्रा में इंटीबायोटिक और पेस्टिसाइड्स मिलते हैं। जो माएं शिशुओं को स्तनपान नहीं करातीं उनको लगता है कि गाय के दूध के रूप में उनके पास अच्छा विकल्प है। लेकिन शिशु के जन्म के पहले साल में उसे गाय का दूध पिलाने से बचना चाहिए। चूंकि पोषक तत्वों के लिहाज से यह दूध असुरक्षित, अपर्याप्त है। उन्होंने कहा कि माताओं से अपेक्षा की जाती है कि हर हालत में शिशु को वह अपना दूध ही दें। यही उनके शिशु के लिए सबसे लाभकारी, पौष्टिक और विटामिन और मिनरल के लिहाज से सबसे उचित है। इसमें एंटीबॉडीज भी होती हैं जो शिशु को जानलेवा रोगों से बचाती हैं। मा का दूध बच्चों को ना सिर्फ डायरिया बल्कि दाद-खाज जैसे रोगों से भी बचाता है।
एक सर्वे के आकड़ों के अनुसार 69 फीसद माताएं अपने शिशु को दो महीने के अंदर ही अपना दूध देना बंद कर देती हैं। 2 से 3 माह तक स्तनपान कराने वाली माए 51 फीसद, 4-5 महीने तक पिलाने वाली केवल 28 फीसद ही हैं। फूड स्टैंडर्ड एंड सेफटी एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने भी दूध के उच्चतम मानक को बढ़ा दिया है ताकि ई.कोली, शिगेला और सलमोनेला जैसे रोगों से शिशुओं को बचाया जा सके। चूंकि ये रोग पशुओं से ही आते हैं।