सोमवार, 19 दिसंबर 2011

हरियाणा की प्राचीन पर परा कला व संस्कृति को जिंदा रखने के लिए सूचना व जन स पर्क विभाग की तरफ से जिलास्तर पर सांझी बनाओ प्रतियोगिता का आयोजन नवरात्रों के दौरान पूरे नौ दिन सांझी के गीत गाए जाते हैं देव राज सिरोहीवाल जिला सूचना एवं जन स पर्क अधिकारी


ASHOK YADAV KURUKSHETRA,
कुरुक्षेत्र 19 दिस बर -     हरियाणा की प्राचीन पर परा कला व संस्कृति को जिंदा रखने के लिए सूचना व जन स पर्क विभाग की तरफ से जिलास्तर पर सांझी बनाओ प्रतियोगिता का आयोजन किया, जिसमें प्रथम स्थान पर रहने वाली दीदार नगर की नीलम पुत्री जयंत राम को 2500 रुपए, द्वितीय स्थान पर रहने वाली दीदार नगर की उर्मिला पत्नी कुलवंत को दो हजार रुपए तथा तृतीय स्थान पर रहने वाली टेरी पब्लिक स्कूल की अनामिका को 1500 रुपए का नकद पुरस्कार दिया गया। इस अवसर पर समेकित बाल विकास परियोजना की कार्यक्रम अधिकारी गुरविंद्र कौर मल्ही भी उपस्थित थी।
              श्रीमती गुरविंद्र कौर मल्ही ने बताया हरियाणा प्रदेश में सांझी पर परा को हमेशा से ही लोक संस्कृति की संवाहक माना गया है। हरियाणा की लोक संस्कृति में सांझी को आइना माना जाता है। प्रदेश में दशहरे से पहले 16 श्राद्धों के मध्यकाल में ग्रामीण आंचल में महिलाएं अपने घर आंगन की दीवारों पर सांझी के पर परागत भित्ती  चित्रों की रचना करती हैं। सांझी का अर्थ सांझ, सायं अथवा अर्चना से है। सांझी का क्षेत्र और स्वरूप जितना विस्तृत और विराट है, उसको बनाने के ढंग भी उतनी तरह के हैं। एक मान्यता के अनुसार कंवारी कन्याएं अच्छे जीवन साथी, सुख-स पत्ति, पशुधन और कुल बेल के बने रहने के लिए दैनिक वरदान की कामना से सांझी की पूजा करती हैं।
              जिला सूचना एवं जन स पर्क अधिकारी देव राज सिरोहीवाल ने बताया कि महिलाएं दीवार पर गोबर, खडिय़ा मिट्टी, चूडिय़ां, बटन, माचिस की तिलियां और गांवों में उपलब्ध सरकंडों की टुकडिय़ां व प्राकृतिक रंगों से विरासत में मिले हुनर से निखारती हैं। आकृति के हाथ, पैरों की मिट्टी के चांद, सितारों, कड़ी-छलकड़ी, हार, वर्णफूल, नथ, पायल, पाजेब, मुकुट और कंगन आदि गहनों से मंडित कर मोती, कांच, सीप, शंख व चूडिय़ों के टुकड़ों से सजाती हैं। दांतों की जगह चावल अथवा दाल के दाने और आंखों की जगह कोडिय़ां उपयोग की जाती हैं। विभिन्न रंगों के कपड़े पहनाए जाते हैं। सांझी की मूल आकृति के साथ अनेक प्रतीक भी बनाए जाते हैं, जिसमें नारी के सुहाग व प्रसाधन चिहन् शामिल हैं।
              उन्होंने बताया कि नवरात्रों के दौरान पूरे नौ दिन सांझी के गीत गाए जाते हैं और दशहरे के दिन इसे दीवार से उतारकर जल में विसर्जन के लिए नदी, तालाब और जोहड़ आदि में पर परागत ढंग से ले जाया जाता है। सांझी में देवी भावना निहित होती है। हरियाणा में बड़ी महिलाएं कन्याओं को सांझी बनाने के लिए सहयोग करती हैं। दशहरे के दिन सांझी को हलवा खिलाकर दीवार से उतारा जाता है और उसे विसर्जन के लिए ले जाया जाता है।

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