अशोक यादव कुरुक्षेत्र
जादू भ्रम युक्त एक विज्ञान है। जादूगर सूरज जादू को भ्रम की कला युक्त एक विज्ञान मानते है, अर्थात एेसा विज्ञान जिसने जादूगर अपने हाथ की सफाई, कौशल,अभ्यास एवं सम्मोहन के द्वारा विज्ञान को अलौकिक रूप दे देता है और वही विज्ञान जादू नजर आता है। जादू भारत की प्राचीनतम 64 कलाओं में से एक है। इसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के मेजी शब्द से हुई है। जिसका अर्थ है भ्रमित करने की कला।
अशोक यादव से एक खास बातचीत में बीए तक की पढाई करने वाले 33 साल के जादूगर सम्राट जिनका बचपन का नाम उपेन्द्र जैन ने कहा कि आज जादू की कला अंतिम दिन गिन रही है और यह कला विलुप्त होती जा रही है। आज देश भर में मुश्किल से 13 -14 अच्छे जादूगर बचे हैं। जादूगर सम्राट शंकर ने तो जादू की सफाई करनी ही छोड़ दी है।
जादूगर सम्राट ने बताया कि आज किसी भी सरकार ने कला के क्षेत्र में उन्हें सम्मानित नहीं किया है। जबकि विश्व के महान क्रिकेटर कपिल देव द्वारा और बलराम जाखड़ द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया है। उन्होंने बताया कि विदेशों मेें जादू की कला को बहुत बढावा दिया जाता है और उन्होंने सरकार से मांग भी कि है कि सरकार जादूगरों पर लगने वाले मनोरंजन टैक्स को भी बंन्द करे तो बहुत अच्छा होगा क्योंकि उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राज्यस्थान, जम्मू कश्मीर और उत्तरांचल की सरकार द्वारा जादूगरों से कोई भी टैक्स नहीं लिया जाता है। सरकार भी जादूगर को किसी भी प्रकार का कोई प्रोत्साहन नहीं देती है। बैंक में लोन लेने की सुविधा तक जादूगर के लिए नहीं है। यदि सरकार ने इस कला की ओर कोई ध्यान नहीं दिया तो यह कला दम तोड़ जाएगी।
1994 में स्थानीय शहर श्री गंंगानगर में आयोजित एक फैशन शो में अपनी कला का पहला प्रदर्शन करने के बाद सम्राट सूरज ने पीछे मुडक़र नहीं देखा और धीरे-धीरे अपनी इस कला को अपना व्यवसाय बना लिया। जादूगर सूरज ने बताया कि राज्यस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, उत्तप्रदेश,उत्तराखण्ड, जम्मू कश्मीर में 12980 शो कर चुके है। इसके अलावा थाइलैंड, मारीशस, सिंगापुर, साउथ अफ्रीका, नेपाल में भी अपनी जादुई कला का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है।
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पल में तोला, पल में माया, जादूगर सम्राट सूरज का मायाजाल
बड़ी-बड़ी आंखें सुन्दर व्यक्तित्व राजाआें महाराजाओं वाली बेशकीमती पौशाक पहने रंग बिरंगी चमचमाती रोशनी और मधुर संगीत के बीच जब जादूगर सम्राट सूरज अचानक प्रकट होते हैं तो मानो एेसा लगता है जैसे आसमान से बादलों की चीरता हुआ राजकुमार साक्षात धरती पर आ गया हो। 1994 में जादूगर सम्राट शंकर के शो देखकर हुई इच्छा तथा जादूगर बनने का निश्चय किया। अध्ययन के साथ - साथ मधुसूदन चौहान को गुरू बनाकर जादू के अनेक गुर सीखे। दिल्ली के प्रसिद्ध जादूगर राजकुमार और कर्नाटक के जूनियर शंकर से विशेष जादुई शिक्षा ग्रहण की।
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शो की मुख्स आइटमें
ढाई घंटे के जादुई शो के दौरान बिजली के आरे से जादूगर सूरज द्वारा खुद को दो अलग -अलग टुकड़े करना, लडक़ी को कबूतर बना देना, लडक़ी को हवा में उड़ा देना, लडक़े को लडक़ी बनाना, लडक़ी के हाथ पैर गर्दन रबड़ की तरह खींचना, खाली हाथों से नोटों की बारिश करना, गुनाहों का देवता, जापान के तीन भूतों का खेल देखकर जनता तालियां बजाने को मजबूर हो जाती है। वे ज्यादा ध्यान कपड़े बदलने की संख्या पर रखते हैं।
जादू भ्रम युक्त एक विज्ञान है। जादूगर सूरज जादू को भ्रम की कला युक्त एक विज्ञान मानते है, अर्थात एेसा विज्ञान जिसने जादूगर अपने हाथ की सफाई, कौशल,अभ्यास एवं सम्मोहन के द्वारा विज्ञान को अलौकिक रूप दे देता है और वही विज्ञान जादू नजर आता है। जादू भारत की प्राचीनतम 64 कलाओं में से एक है। इसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के मेजी शब्द से हुई है। जिसका अर्थ है भ्रमित करने की कला।
अशोक यादव से एक खास बातचीत में बीए तक की पढाई करने वाले 33 साल के जादूगर सम्राट जिनका बचपन का नाम उपेन्द्र जैन ने कहा कि आज जादू की कला अंतिम दिन गिन रही है और यह कला विलुप्त होती जा रही है। आज देश भर में मुश्किल से 13 -14 अच्छे जादूगर बचे हैं। जादूगर सम्राट शंकर ने तो जादू की सफाई करनी ही छोड़ दी है।
जादूगर सम्राट ने बताया कि आज किसी भी सरकार ने कला के क्षेत्र में उन्हें सम्मानित नहीं किया है। जबकि विश्व के महान क्रिकेटर कपिल देव द्वारा और बलराम जाखड़ द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया है। उन्होंने बताया कि विदेशों मेें जादू की कला को बहुत बढावा दिया जाता है और उन्होंने सरकार से मांग भी कि है कि सरकार जादूगरों पर लगने वाले मनोरंजन टैक्स को भी बंन्द करे तो बहुत अच्छा होगा क्योंकि उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राज्यस्थान, जम्मू कश्मीर और उत्तरांचल की सरकार द्वारा जादूगरों से कोई भी टैक्स नहीं लिया जाता है। सरकार भी जादूगर को किसी भी प्रकार का कोई प्रोत्साहन नहीं देती है। बैंक में लोन लेने की सुविधा तक जादूगर के लिए नहीं है। यदि सरकार ने इस कला की ओर कोई ध्यान नहीं दिया तो यह कला दम तोड़ जाएगी।
1994 में स्थानीय शहर श्री गंंगानगर में आयोजित एक फैशन शो में अपनी कला का पहला प्रदर्शन करने के बाद सम्राट सूरज ने पीछे मुडक़र नहीं देखा और धीरे-धीरे अपनी इस कला को अपना व्यवसाय बना लिया। जादूगर सूरज ने बताया कि राज्यस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, उत्तप्रदेश,उत्तराखण्ड, जम्मू कश्मीर में 12980 शो कर चुके है। इसके अलावा थाइलैंड, मारीशस, सिंगापुर, साउथ अफ्रीका, नेपाल में भी अपनी जादुई कला का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है।
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पल में तोला, पल में माया, जादूगर सम्राट सूरज का मायाजाल
बड़ी-बड़ी आंखें सुन्दर व्यक्तित्व राजाआें महाराजाओं वाली बेशकीमती पौशाक पहने रंग बिरंगी चमचमाती रोशनी और मधुर संगीत के बीच जब जादूगर सम्राट सूरज अचानक प्रकट होते हैं तो मानो एेसा लगता है जैसे आसमान से बादलों की चीरता हुआ राजकुमार साक्षात धरती पर आ गया हो। 1994 में जादूगर सम्राट शंकर के शो देखकर हुई इच्छा तथा जादूगर बनने का निश्चय किया। अध्ययन के साथ - साथ मधुसूदन चौहान को गुरू बनाकर जादू के अनेक गुर सीखे। दिल्ली के प्रसिद्ध जादूगर राजकुमार और कर्नाटक के जूनियर शंकर से विशेष जादुई शिक्षा ग्रहण की।
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शो की मुख्स आइटमें
ढाई घंटे के जादुई शो के दौरान बिजली के आरे से जादूगर सूरज द्वारा खुद को दो अलग -अलग टुकड़े करना, लडक़ी को कबूतर बना देना, लडक़ी को हवा में उड़ा देना, लडक़े को लडक़ी बनाना, लडक़ी के हाथ पैर गर्दन रबड़ की तरह खींचना, खाली हाथों से नोटों की बारिश करना, गुनाहों का देवता, जापान के तीन भूतों का खेल देखकर जनता तालियां बजाने को मजबूर हो जाती है। वे ज्यादा ध्यान कपड़े बदलने की संख्या पर रखते हैं।
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